Thursday, February 10, 2011

मेरा मैं

प्रस्तुत कविता मेरे द्वारा आज प्रातः काल ही लिखी गयी जो मेरे ह्रदय कि एक अनायास उपज़ है,मेरे प्रिय मित्र जन इसके शाब्दिक घेरे में न उलझ कर अपने चित्त व बौद्धिकता के घेरे में रख कर इन पंक्तियों को अर्थ प्रदान करें..! आपके सहयोग और अर्थबोध के बिना मेरी लेखनी अथवा मेरे विचार व्यर्थ है..!


कल परछाई से बात हुई थी मेरी,
उसने वादा किया वो छोड़ कर ना जाएगा,
मै नंगा रहूँ बाज़ार में खड़ा भी अगर,
वो मेरा अक्स हरगिज़ नहीं शर्मायेगा,
शाम देखा तो उसके भी हाथ लम्बे थे,
मै ठिगना ठगा ठहरा,
फिरता रहा अपना कद लेकर,
फिर शेखर भीड़ में कहाँ ठहरा,
दिए आवाज़, चीखा, चिल्लाया,
कहाँ कोई मुझे सुनने आया,
सड़क को छोड़ मायूसी बांधे,
जर्ज़र किस्मत को रख कांधे,
ठोंकरें खा खा के चौखट आया,
झुर्री से लदे पंजों से चंद पतवार लेकर,
कुछ यहाँ कुछ वहां छिटपुट संसार लेकर,
मै हतास कोसता रहा अपनी नियति को,
क्यों मै बौना हो गया अपने अक्स के सम,
कहा चला मेरे आशाओं का घर बार लेकर,
मोम के बीच लहराता वो आवारा लौ देखर,
जब मैंने नज़र फेरा,
एक परछाई मेरे आगे,
आवारा लौ कि तरह इतराती हुई नज़र आई,
मै सधा महसूस किया,
यकीन जब ये हुआ अभी भी कोई साथ है,
मगर लौ जैसे जैसे बौनी हुई,
मै भी वैसे ही ठिगना हुआ,
लौ कि आखिरी सांस तक मैं उदास था,
कि अक्स लम्बा और मैं छोटा,
मगर लौ के बुझते ही,
परछाई का साथ छूट गया,
उसका अस्तित्व नही मगर,
मै खुश हूँ कि मेरा मैं मेरे पास है..! 




हमे आप अपनी राय अवश्य लिखें क्यूंकि मेरे लिए आपके शाब्दिक  प्रोत्साहन अथवा आलोचना मेरे लिए विद्या और अद्भुत उर्जा का केंद्र  है,,!

2 comments:

  1. nishchay hi tumari ye kavita hriday ko chhu lene wali hai..,mai tumhe nhi janti magar phir bhi khud ko lucky manti hu ki tum jaise sajeev sahitya ko mai padh rahi hun aur swarth rahit chitran ko mahsus kar rhi hun..!
    tumhe tumhare blog k liye shubhkamnayen deti hu..!
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