Friday, July 15, 2016

मैं लौट आया हूँ...

जब शहर की रानाइयों में कुछ नहीं बचता, जब दुनियाँ की भीड़ में अपना 'मैं' खो जाता है, जब रौशनी में भी कोई राहें दिखाई नहीं देती, जब दिशाएँ पाँव के नीचे सिमट जाती है, तो इंसान बदहवास होकर जिंदगी की तलाश में ऊँचाइयों के बरअक्स जमीं पर लौटता ही है. मैं वही कोना ढूँढते  हुए फिर लौट आया हूँ...